कोरी लकीरें
कोरी लकीरें


टुकड़ा भर रोटी के इंतज़ार में फ़ड़फ़ड़ाती है जिह्वा फेफ़डों में फंसी,
कह नहीं सकते,
भूख को निगल गया या भूख उसको निगल गई..
नैराश्य के प्रतिबिम्ब सा नतमस्तक ये बुत किस शोर से आहत है
वक्त की धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश है उसका
कौनसी बारिश की घोषणा का इंतज़ार है उसे..
कह दो उसे कुछ नहीं बदलने वाला छान ले लकीरों से खुशियों की माला
कंकर से वजूद को हक कहाँ सपनों की पालकी में विराजमान होने का..
शाखाएँ सूख गई वक्त की पतझड़ कुछ लंबी ठहरी
तू आम इंसान है तेरी उम्र में अच्छे दिन की नमी की कमी ही रही..
कर इबादत शिद्दत के साथ जन्म मिले जो दूसरा,
महलों की दहलीज़ और सर पर आसमान मिले सुनहरा..
इस जन्म की हर तारीख तेरी एक सी कटी,
धुंध से निकला धुएँ में अटका आग ही आग तेरे कूचे में लगी..
कोरी लकीरें, कोरी है किस्मत, कोरी सी आँखों में किरकिरी भरी
तेरे आसमान में बरसाती बादलों की जगह ही नहीं..