क्षति (जोशी मठ त्रासदी)
क्षति (जोशी मठ त्रासदी)
रात में एक सन्नाटा सा आया,
घर की छत और जमीन को चीरता आया,
चुप बस सब चुप थे,
आंखों में आसूं मदद के थे,
घोंसला अब लगभग क्षतिग्रस्त है,
नीचे से आने वाली मदद भी गायब है,
इस अंधेरा का सवेरा क्या होगा,
उस रौशनी में मेरा ये बिखरा घर कैसा दिखेगा,
नाले नाली सब तीव्र प्रवाह पर थे,
हम प्रकृति के प्रकोप के आगे चुप थे,
क्या रोकते और क्या बचाते,
कैसे इस उग्रवाद को वापसी का रास्ता दिखाते,
पत्थर के बड़े टीले और रेत ही है,
जीवन की पूंजी आधी बाकी आधी उजड़ गई है,
उसी टीले पर मैं पालथी मारे बैठा था,
मेरी गली में लगभग हर घर दरार की चपेट में था,
ये बदलती हवा उड़ा ले गई हर साथ,
पहाड़ो को छोड़ सब परदेसी लौटे अपने घर बार,
उजड़े जोशीमठ को निहारे ना कोई,
इष्ट बस्ते थे जहा वहा दिखे ना कोई,
धरती आकाश सब हावी से है,
प्रकृति रुष्ठ हमसे है,
बैठे है इसी टीले पर रास्ता देख रहे हैं मदद का,
सवाल छोटा सा है अब कल कैसा होगा।