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kacha jagdish

Abstract Tragedy

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kacha jagdish

Abstract Tragedy

जमाना आज का

जमाना आज का

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ये कैसा है जमाना आज का

रिश्ते ना हुआ रिश्ते का

जिन ऊंगलीयों को थामकर स्कूल गये 

उन हाथों को छोड़कर कॉलेज की

डहलिज को पार कर गये 


जिन हाथों ने उठाया स्कूल का बस्ता

कंधे पर वो हाथ आज बोझ लगे

जिसने तुम्हारी हर गलत बात नादानी मानी

उसकी सही सोच आज रोक टोक लगी

माना नही दी हर वो चीज जो मागी


कभी किसी कमी ना होने दी

तो क्या हुआ पढ़े नही है वो

तुम्हारी पढ़ाई में कोई कमी नही रखी

चाहे कैसा भी हो हरजगह अपना कहकर मिलवाया

आज कहीं ले जाने में कठिनाइयां आई


मां को बेटे इज्जत प्यारी है

सास की ना इज्जत करने वाली बहू बेटे को प्यारी है

बच्चे अपने पालने मे सासूमा चाहिए

धूमने जाने को प्राइवेसी चाहिए

बचपन में हमेशा मां-बाप चाहिए 

बुढापे में छुटकारा चाहिए।


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