मन
मन
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मन को कर भयमुक्त
प्रेम से प्रेम में हृदय की रिक्तता को है भर दिया
सँवार होके नयनों की नौका में मन से हृदय तक का राह मैंने
है तय कर लिया ।।
इन अँखियों की दृष्टि को रूप तेरे में पूर्णता है वर मिला
जैसे वर्षा की बूँद को है सागर मिला ।।
है समर्पण ऐसा की हर रोज़ बेइरादा प्रेम है उपज रहा
जिसने जन्म है दिया तेरी मेरी मिली जुली इक दुनिया को
जिसमे प्रेम से प्रेम में उजागर किया एक दीप है धरा
जो तेरे मेरे साथ और प्रेम का प्रतीक है हुआ ।।