गजल
गजल
खुदा के नूर - सी रोशन हमेशा घर सजाये माँ,
मकानों को मुहब्बत से हमेशा घर बनाये माँ।
खुदा ने अपनी कुदरत से दिया है माँ को वो रुतबा,
बहू - बेटी, कभी बनकर वो रिश्तों को निभाए माँ।
रहे परवाह सारे दिन महज़ परिवार की उसको,
बलाओं को जमाने से हमेशा ही भगाए माँ।
लगी रहती हमेशा ही वो घर के काम करने में,
सभी के बाद सोती है हमें पहले सुलाये माँ।
खिलाती है हमें पहले, सभी के बाद वो खाती है,
दिवाली, ईद पर पकवान भी ढेरों बनाए माँ।
करे कुर्बान सब खुशियाँ, नहीं खुद का कभी सोचे
सुखी परिवार हो जिसमें ख़ुशी उसमें मनाये माँ।
करे औलाद के हक में दुआएँ वो खुदा से भी,
खुदा का रूप वो धर कर जमाने में जो आए माँ।
भले कर लाख कोशिश तू मगर ये याद रख 'मंजू',
नहीं गुणगान कर सकती कि ग़म कितने उठाये माँ।
