निज विवेक का उपयोग करो।
निज विवेक का उपयोग करो।
दुनिया सारी अच्छा बोले, अपना मन ही ललकारे । बेकार है वो अच्छा होना, जब अंतर्मन ही धिक्कारे।
इतिहास बनाना है तुमको, उत्कृष्ट कार्य करना होगा। औरों के इशारों पर नहीं , अपने पैरो पर चलना होगा।
औरों के कदमों पर चलकर, पहचान नहीं पा सकते हम। एक खास लक्ष्य, मंजिल ,इज्जत, सम्मान नहीं पा सकते हम।
यदि पुरुष हो, पौरुष है तो फिर, क्यों हीन भाव में जलते हो। नज़रों से मिलाओ नज़रों को, सिर झुका-झुका क्यों चलते हो।
स्वयं को धोखा देना है, किसी जिम्मेदारी से बचना। कुदरत भी ऐसा ही करती तो , सृष्टि की नहीं होती रचना।
मानसिकता भेड़ों वाली होगी, भीड़ में चलते जाओगे। भीड़ भी पीछे आयेगी, यदि रास्ता अलग बनाओगे।
जिन्हें द्रौणाचार्य मानते हैं, ऐसा झटका देंगे हमको। किसी भ्रम में न रहना एकलव्य, सचमुच लटका देंगे हमको।
निज बुद्धि और विवेक का कभी , योग मिलकर तो देखो। ये घिसती नहीं चमकती है, उपयोग में लाकर तो देखो।
कायर और कपूत हमेशा, सीधे पथ पर जाता है। सिंह, सपूत, 'उल्लास' को, भय मंज़िल का नहीं सताता है।