गुड्डे और गुड़ियों का खेल
गुड्डे और गुड़ियों का खेल
एक गुड्डा उसका होता था
एक गुड़िया मेरी होती थी और
हर रोज खेल ही खेल में
नयी कहानी शुरू होतीं थी!
उस वक्त हम अक्सर अपने
गुड्डे और गुड़ियों का ब्याह रचाते थे
और तब हम दोनों नासमझ
उनके मम्मी-पापा बन जाते थे !
उन्हें अच्छे से तैयार करना
हम दोनों को अच्छा लगता था
अरे वह तो सिर्फ खेल था पर
वह खेल भी हमें सच्चा लगता था !
क्या तुम्हें याद है वो बातें सारी
खेल खेल में उनका घर बनाते थे
और किस तरह बचपन में
हम पूरी तरह से खो जाते थे!
चलो एक बात मानो मेरी
फिर से वही खेल रचाओ ना
मैं गुड़िया बन जाती हूं और
तुम वैसे ही गुड्डा बन जाओ ना!