बना देते थे गुड़िया और गुड्डा सजा के उसमें बैठा देते थे बना देते थे गुड़िया और गुड्डा सजा के उसमें बैठा देते थे
हर रोज खेल ही खेल में नयी कहानी शुरू होतीं थी! हर रोज खेल ही खेल में नयी कहानी शुरू होतीं थी!
वादा करती हूँ फिर कभी, ना उड़ाऊँगी पतंग ना भागुँगी तितली के पीछे। वादा करती हूँ फिर कभी, ना उड़ाऊँगी पतंग ना भागुँगी तितली के पीछे।
मेरे अपनों की एक दुनिया में मेरे खिलौनों की एक दुनिया थी. मेरे अपनों की एक दुनिया में मेरे खिलौनों की एक दुनिया थी.
गुड्डे गुड़ियों की थी वह दुनिया बचपन था खुशियों की पुड़िया। गुड्डे गुड़ियों की थी वह दुनिया बचपन था खुशियों की पुड़िया।