वसन्त
वसन्त
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आ गया वसन्त है
छा गया वसन्त है।
प्रसून भी हैं खिल रहे
उमंग उर हैं लेकिन रहे।
इला दुल्हन सी सज रही
नवीनता प्रसार रही।
मनुज मन निखर रहा
प्रकृति में ही रम रहा।
मां भारती भी ज्ञान से
मन विमल है कर रही।
वीणा वादिनी हमें
संगीत भी सुना रही।
प्रेमपुष्प खिल रहे
उर से उर हैं मिल रहे
वसन्त तू महान है
अभिनव के समान है।