जीवन सुमन
जीवन सुमन
जीवन सुमन सूख रहा है
जैसे खुद से रुठ रहा है
प्रेमजल भी सूख रहा है
जीवन निरर्थक हो रहा है ।
कर्तव्यपथ भी निहार रहा है
मुझे प्यार से पुकार रहा है ।
सुपथगामी बन जाने को
अंतर्मन भी बोल रहा है ।
अडिग रहूँ बाधाओं में मैं
जीवन पुष्प खिला रहेगा ।
सत्कर्मी बन जाने पर मैं
पुष्पसम ही खिल जाऊँगा ।
सच्चरित्र मेरा निखर जाएगा
अन्त:करण भी महक जाएगा ।
कर्मठ बनकर जीना होगा
जीवन सुमन खिलाना होगा ।