पृथ्वी
पृथ्वी
बचा लो धरा को अभी भी समय है
सुधारो स्वयं को अभी भी समय है।
मानव नहीं अब सबसे बड़ा है
अभिमान देखो जमीं पर पड़ा है।
ग्रह है न कोई पृथ्वी के जैसा
पछताना पड़ेगा समय है ये ऐसा।
विज्ञान तो अब विनाश ही करेगा
सद्ज्ञान से ही उत्थान होगा।
देह का भान स्वयं से निकालो
आत्मज्ञ होकर स्वयं को निखारो।
चैतन्य हो तुम, नहीं देहवाले
आत्मा ही हो तुम परम तेज वाले।
धरती हमारी अनोखी है माता
गोदी में इसकी हम सब हैं भ्राता।
दोहन नहीं अब अधिक से अधिक हो
सौन्दर्य में फिर हरित ही हरित हो।