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देख साथ आने को...

देख साथ आने को...

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देख साथ आने को मौत बेकरार है,

तुझपे ही मर मिटने को मौत बेकरार है…


तक़ल्लुफ़ ना कर हाथ थाम ले वक़्त का,

जान ले वो हाथ से फिलसलने को तैयार है…


तारीख़ की तरन्नुम पर जब नाचती हो सारी दुनिया,

पहचानिये अब मिज़ाज-ए-वक़्त बिगड़ने की कगार है…


ताकतें हुजूम की जब हावी हो ताज-ओ-तख़्त,

नाला-ए-आलम-ओ-ज़ख्म-ए-बेकसी हर तरफ इख्तियार है…


मिलावटी सोच और सिकुड़न दिलों की,

बाजे-बाजे अकबर सब जगह बेशुमार है…


ना तेरी चली ना रुक ही सकी मेरी,

अक्ल है बेतरतीब बस दौड़ने को होशियार है…


चाहतों के सिलसिले, हुई मुद्दत कोई हमसे मिले,

आलम कहाँ जो अक्स-ओ-रूह निसार-ए-यार है…


‘हम्द’ तैश ना खाइये की आग-ए-जिगर ख़ौफनाक है,

संभालिये ये ना-उम्मीदी की हार-ए-दिल बार-बार है…


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