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Sudhir Kumar Pal

Romance

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Sudhir Kumar Pal

Romance

राग हो तुम, रेशम बहारों की

राग हो तुम, रेशम बहारों की

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राग हो तुम, रेशम बहारों की

रंगों की हो माला, हमदम नज़ारों की

रूप के हैं तुम पर आतिश नज़रानी,

इक तुम ही हो तजल्ली बस उन सितारों की।


रात का हो सन्नाटा और हो सुनसान सब्ज़-ओ-बाग़,

तुम ही तो हो आहट मेरे दिल के गलियारों की

तड़पती आंच बुझती शमा की होता ख़ाक-ए-सुपुर्द लौ-ए-बदन,

कौन नहीं कहता हो तुम बुत इन ख़्वाहिशातों की।


हो चला बेगाना जो रिश्ता आसमानों से,

तस्वीर-ए-उम्मीद हो उसकी इस जिगर के दीवारों की

'हम्द' डूब जाए ना तेरी चाहत की कश्ती,

बना ले उन्हें रूह-ए-लहर ज़िन्दगी के किनारों की।


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