ग़फ़लत हो ही जाती है...
ग़फ़लत हो ही जाती है...


ग़फ़लत हो ही जाती है जब होता है इश्क़
तर्बियत बदल जाती है जब होता है इश्क़
रहता नहीं सुकून दिल के किसी कोने में
आग लग ही ऐसी जाती है जब होता है इश्क़
जो मार के थे खाते अब फेंके टुकड़ों पे हैं निर्भर
अकड़ हो जाती राख़ जब होता है इश्क़
पहले पूछे था ज़माना जिस गली निकल जाते थे
शख़्सियत हुई ख़ाक जब होता है इश्क़
सोने से सजायेंगे ज़िन्दगी का हर लम्हा अपना
तम्मन्ना हर हुई फ़नाह जब होता है इश्क़
करते थे जो नाज़ दोस्ती पे अपनी
हुआ रंजिशों का महल दिल जब होता है इश्क़
क्या क्या ना किया जतन करें नफ़रत तुझसे ए 'नाज़'
हर बार खुद से हैं हारे जबसे हुआ हमें इश्क़