आतिफ़-ए-हुजूम तेरी नज़र को...
आतिफ़-ए-हुजूम तेरी नज़र को...
आतिफ़-ए-हुजूम तेरी नज़र को हमने क्या देखा,
फ़ानी-ए-बुलबुला-ए-इश्क़ नूरानी देखा...
फ़लसफ़े को तरसते तेरी दीद के दीवाने अर्श-ओ-मिराज़,
लुत्फ़-ए-हया मरमरी-ए-संगी आलम-ए-हैरानी देखा...
देख तो लिया हुस्न तेरा क़ज़ा की तवाईश सा,
तेरा क़ातिलाना डूबता मोहोब्बत में अंदाज़ देखा...
कर ही जाती वो नज़र तेरी क़त्ल हर मेरी बेमिसाली को,
बस युँ समझो की तुमने देख कर भी हमको इक बार ना देखा...
क़ब्र की मिट्टी सी पाक हर हो चली हसरत मेरी,
तेरी लौ-ए-शमशीर-ओ-शबा कुरुतलेंन का कमाल देखा...
बस यूँ जानिए के जानते हम जो थे अब तलक,
होके रूबरू तेरे अक़्ल को अपनी हमने फ़ानी-ए-लम्हात-ओ-संदीक देखा...
कर रहे थे गुमान बाज़-ओ-हयात की जुर्रत,
खुद को तेरे क़दमों तले बना ज़मीं देखा...
बेमिसाल-ओ-कमाल-ए-सूरत तेरी,
उससे भी नाज़-ओ-अज़ीज़-ए-सीरत तेरी,
तू है ख़ुदा या उसकी बीनाई तू,
तुझे ही अब बस हमने जहानशीं देखा...
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तुझे देखा तेरा इश्क़ देखा,
तुझे देखा अहले क़माल देखा,
क्या देखा किस ज़ुबाँ 'हम्द' करूँ बयाँ,
देखा क्या और क्या क्या देखा....