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Sudhir Kumar Pal

Tragedy

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Sudhir Kumar Pal

Tragedy

मेरी आँखों का संसार

मेरी आँखों का संसार

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मेरी आँखों का संसार कितना छोटा हो गया,

मतलबी दुनिया का पर्दा कितना मोटा हो गया।


कोई ख़ुद से दुःखी कोई अपनों से परेशान,

भाई भी तो भाई का दुश्मन हो गया।


तंज सही जाती नहीं छोटी सी इस दिल से,

हैवानियत का देखो जैसे आईना हो गया।


इश्क़ होता क्या आप हमको बतलाओ,

पिताश्री से पापा पापा से बाप हो गया।


उँगली पकड़ कर जो कन्धे पर बिठाते थे,

हर बात पर उँगली उन्हें दिखाना फैशन हो गया।


हाथ पकड़ कर जो रस्ता बुझाती थी,

हाथ उसका झटकना कोई मौसम जैसा हो गया।


रंग बिरंगी राखी, बहनों के प्रेम की सौगात,

 लोभी नज़र के फेरे में झिलमिलाता धागा हो गया।


इश्क़ ख़ुद से इस कदर मैं कर लूँ,

वे भी हैं अपने मानो चुटकुला सा हो गया।


करवट बदल रहा है वक़्त चाल धीमी ना हो जाये, 

छोड़ दे उसे पीछे जो धीमा हो गया।


साँसों का है ज़ोर जो दौड़ लगी है अन्धी,

संभल ज़रा कोई तेरा आगे तुझसे ना निकल जाये।


लगा अड़ंगी ज़मीं उसे चटा,

तू ही तो सारी मिल्कियत का मालिक हो गया।


कब तक चलेगा कुफ़्र का यह वहशीपन, 

तू आज अपनो से ज़्यादा अपना हो गया।


रुक जा, ठहर, सर पर थोड़ा बल देले,

काम फूलों का काँटों से कैसे हो गया।


तू तेरे साथ, साथ वक़्त के घेरे,

बाग़ ये प्यारा कैसे न्यारा हो गया।


फ़िज़ा ख़ुशगवार फ़िर आती है,

माँ-बाप हैं तो जन्नत तक संवर जाती है।


कर 'हम्द' सदके अपनों की चाहत के,

जान फ़िर तीन जहान तेरा हो गया।


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