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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Tragedy

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Tragedy

सच में अब डर लग रहा है

सच में अब डर लग रहा है

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सच में अब डर लग रहा है 

कहीं दूर जाने का मन कर रहा है 

अब बिल्कुल अलग लग रहा है 

देश प्रेम भी अब नहीं रोक रहा है 

कहीं दूर जाने का मन कर रहा है!


कभी सोचा नहीं ऐसा भी होगा 

बीस साल पहले का रुकना कैसा होगा ,

तब तो परदेश जाने का मौका था 

चहूँ ओर विचरने का झोंका था !


पर अपनी धरती पुकारती थी 

कुछ करेंगे हम, ये निहारती थी 

कोशिश करते रहे, खुश रहते रहे 

अब क्या हुआ, मन व्यथित हुआ !


अब तो रार ही रार है 

ज़िन्दगी का यही सार है 

रुके तो फिर मझधार है 

गये तो भव पार अपार है !!


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