दर्द कुछ पहचाने से
दर्द कुछ पहचाने से
कइयों की जुबानी सुना
अक्सर रिसालों में भी पढ़ा
तन्हा रहने से, अक्सर
जेहन की सलामती पर
ज़ंग लग जाता है
जो दीमक की तरह चाट आपको
कर देता है निहायत कमजोर,
होने चाहिये आपके पास कुछ कंधे
निश्चिंत हो अपना सिर रखने के लिए
होने चाहिए कुछ हाथ
जिन्हें पकड़ आप अपने डगमगाते कदमों को
सम्भाल सके।
खोजना चाहा कुछ ऐसा पर पाया कि
चेहरे पर मुस्कुराहट का मुखौटा लगाए
हर कंधा अपनी शक्ति से ऊपर
कुछ बोझ उठा रहा है।
"हर हाथ के पाँव दलदल में हैं "
और तन्हा यहाँ कोई है ही नहीं
जिसे जाकर थाम लूँ
क्योंकि हर किसी का साथ
उनके कुछ अनकहे, अनछुए दर्द
निभा रहे हैं।
