सफेद आंचल
सफेद आंचल
आसमान साफ साफ बोला
धरती तुम इतनी कीचड़ मैली
जरा ध्यान दो,
नहीं तो पीड़ित होगी
खतरे में पड़ोगी ?
धरती बोली,
क्या कहूं, इंसान की बात
मुझे शर्म आई
तेरे धर्म से संतान
भूल गए पिता स्वर्ग
माता धरित्र पूजन
मैं क्या करूँ, संस्कारक
आप तो पिता, संभालो
अपने बच्चों को ?
पढ़ाई करो वेद
साफ सफाई रखो जिंदगी में
लेकिन, पानी जहर
हवा में भी
सूरज देखता, क्रोध में
हवा बहता वात्या ले के
सागर चाहता, डुबाने,
आ गयी महामारी करोना
विस्तार किया काया
घूमना फिरना बंद हुआ
अकेले रहने पड़ा
लेकिन आदत नहीं जाती
क्या करूँ, मैं हो गई संक्रमित।