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Soniya Jadhav

Abstract Tragedy

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Soniya Jadhav

Abstract Tragedy

उम्मीदें

उम्मीदें

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बिस्तर पर पड़ी बीमार आँखें , 

दरवाजे पर आवाज करती लाठी,

देखती है रास्ता उन उम्मीदों का,

जो बचपन में बोयी थीं। 


ज़्यादा कुछ नहीं चाहा था, थोड़ा सा समय

और बस दो वक़्त की रोटी।

उम्मीदें बड़ी हो गयी, वक़्त के साथ अजनबी हो गईं।

एक दिन उम्मीदें भी उम्मीद करते-करते,

आखिर ख़त्म हो गईं।


समझ गया हमारा काम उन्हें जन्म देना था,

और उनका हमारी चिता को अग्नि।

कमबख्त ना जानें ये उम्मीदें कहाँ से बीच में आ गई।

बस एक ही इंतजार करती है आँखें मृत्यु का। 

उम्मीद करता हूँ वो धोखा नहीं देगी, 

बिना कोई दर्द दिए, हमें सुकून से ले जाएगी।


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