जो मार के थे खाते अब फेंके टुकड़ों पे हैं निर्भर अकड़ हो जाती राख़ जब होता है इश्क़ जो मार के थे खाते अब फेंके टुकड़ों पे हैं निर्भर अकड़ हो जाती राख़ जब होता है इश...