डरावना
डरावना
बात लगभग 90 वर्ष पूर्व की है,मेरा तो जन्म भी नहीं हुआ था। मेरे पिता, जो उस समय डिप्टी कलक्टर थे,ऐसी जगह पोस्टिंग हुई जहाँ न लाइट थी न ही पानी का नल।मैं भी 1955-57,एक जगह उनके साथ ऐसी जगह रही थी जहॉं उस जमाने में लाइट व पानी के नल नहीं हुआकरते थे घर में। कुँए से पानी लाने के लिए एक नौकर रहता था।लालटेन, लैंप, ढिबरी से पढ़ाई-लिखाई और अन्य काम होते थे।
जल्दी ही सो भी ज़ाया करते थे। आज 90 वर्ष पूर्व की घटना सुना रही हूँ। मॉं पिता जी को रोज़ बतातीं कि इस घर में डर लगता है। तरह-तरह की आवाज़ें आती हैं. कभी दूसरे कमरों से खिलखिला कर हँसने की आवाज़ आती , कभी चूड़ियों के खनखनाहट की आवाज़ आती है। पिताजी भूत-प्रेत में यक़ीन नहीं करते थे तो हँस कर टाल जाते।कहते बहुत डरपोक हो तुम लोग।
घर बहुत बड़ा था।कई कमरे तो इस्तेमाल ही नहीं होते थे। अँधेरा पसर जाता सॉंझ होते ही। एक दिन रात के समय जब पिताजी रसोई में पटरे पर बैठ कर ( तब यही रिवाज़ था। बाहर से आते, नहाते ,रसोई घर में ही,नीचे बैठ कर खाना खाते थे )खाना खा रहे थे। अचानक उन्होंने सामने दालान में रखे पीतल की कलसी ( मटकी) को टेढ़ा होते देखा।
नीचे रखे लोटे से टकराने की ठक-ठक आवाज़ भी सुनी।नौकर जो हर समय रहता था वह दूर हाथ बॉंधे खड़ा था.यह दृश्य देखते ही पिताजी को यक़ीन हुआ कि मॉं ठीक कहती थीं। ज़रूर कुछ भूत-प्रेत का चक्कर है इस घर में। दूसरे दिन सबेरा होते ही,दूसरे घर में चला गया पूरा परिवार। लाइट तो वहाँ भी नहीं थी।पर भूत-प्रेत वाले डरावने दिनों से मुक्ति मिल गई थी।