STORYMIRROR

DURGA SINHA

Inspirational

4  

DURGA SINHA

Inspirational

ख़्वाब

ख़्वाब

1 min
347

एक सपना, नज़र में पलता है

रूह प्यासी है, जिस्म चलता  है।।


ख़्वाहिशों के, भरे समंदर  में

ख़ाली सीपी लिए मचलता है।।


रेत में, ओस की गिरी बूँदें

बूँद का तन-बदन ही जलता है।।


छॉंव की चाह,अब भी बाक़ी है

दूर तक, पेड़ देखो कटता है।।


हम किनारे पे, कब से बैठे हैं

देखें तूफ़ान, कब ये घटता है।।


अनकहे दर्द को, सुन सके कोई 

अब कहाँ कौन किसको कहता है


चल ‘उदार’, लौट अब चलें घर को

कौन  ऐसे  जहॉं  में, रहता  है।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational