प्यार
प्यार
सोचता हूँ कि,तुम्हें प्यार करूँ या न करूँ
ख़त में लिखता तो हूँ, इज़हार करूँ या न करूँ।।
जब से देखा है तुम्हें, चैन एक पल भी नहीं
जीना अपना यूँ,दुश्वार करूँ या न करूँ।।
तेरी आँखों ने, तसल्ली तो दिया है दिल को
तेरी बातों का, ऐतबार करूँ या न करूँ।।
मेरी ग़ुरबत की,दुहाई मैं न देना चाहूँ
अब कभी तुमसे, नज़र चार करूँ या न करूँ।।
दर्द -ए-दिल अपना,सुनाना भी न चाहूँ मैं ‘ उदार ‘
गुल और गुलशन से,गुलज़ार करूँ या न करूँ ।।