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VIKASH YADAV

Inspirational

4  

VIKASH YADAV

Inspirational

बेरहम हो तुम

बेरहम हो तुम

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जिंदगी यानि तुम, एक कशमकश, बेखौफ हो इस हद

हंसाती हो बाहर से, अंदर से दफन करती हो कब्र तक

मरना होता इतना सरल तो , क्या मै सोचता इतना

आसान भी नहीं यहां जीना , हस के हर सितम को पीना

जिंदादिली का झूठा एक और खेल खेला जाए

क्यूं ना अच्छे से बर्बाद हुआ जाएं


पैदा हुए तब से, आंखो में है कई सवाल

क्यूं हो इतनी निष्ठुर और शून्य, है कोई जवाब

उदासी भरे सपनों का, नहीं है कोई सबब

जिंदा है तो जी रहे है, वरना है कोई तलब ?

जुए की तरह एक आखिरी दाव लगाया जाए

क्यूं ना अच्छे से बर्बाद हुआ जाएं


उसकी ख्वाहिशे इतनी कि पड़ जाओगी छोटी तुम

क्यूं घबरा गई ना , मिलवा दे कभी उनसे तुम्हे हम

है मुश्किल उसे समझना जितना, नहीं हो तुम भी कतई कम

जुड़वा सी लगती हो दोनों, तरीका भी वही एकदम

झूठे वादों की एक और तकरीर करी जाए

क्यूं ना अच्छे से बर्बाद हुआ जाएं


नहीं हूं निर्बल इतना, उठूंगा, बढूंगा मै एक- एक कदम

चाल - ढाल, रंग - ढंग जितने बदल, ना होगा कोई सफल

मौत है अच्छी तुझसे ज्यादा, ना तड़फाती है नरम - नरम

जिऊंगा तुझको, रोंध के तेरा वक्ष , रख ना कोई वहम

टूटे हुए सपनों को एक अंजाम दिया जाए


बर्बाद तो तुम भी हो, बर्बाद मै भी हूं

चलो, क्यों ना अच्छे से बर्बाद हुआ जाए।


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