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VIKASH YADAV

Inspirational Others

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VIKASH YADAV

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बाप

बाप

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मेरी रूह सी सिहर उठती है जिस दिन 

सुबह -सुबह पिता को पलटकर उल्टा जवाब दे देता हूँ । 

शाम होते होते मैं खुद ही खुद

अपराधी के भाव से भर जाता हूँ । 


अकेलापन मुझे ताने मार- मार कर सुनाता है, 

कि मैंने एक अक्षम्य अपराध किया है। 

तुम्हारे ईश्वर तुल्य पूजनीय बाप का 

ऐसा तिरस्कार बिल्कुल शोभनीय नहीं है। 


रात को सोते समय भी उन्हीं का चेहरा सामने तैरता है, 

उदासी का भाव लिए सुकूँ के दो पल ढूंढता है 

उनके चेहरे पर जो झुर्रियाँ है ना मुलायम सी, 

वो गवाह है उनके जीवन के अनगिनत संघर्षों की। 


अब पिता जी धीरे- धीरे बुजुर्ग हो रहे है।

मुझसे उनकी ये दशा देखी नहीं जाती है। 

कितना मुश्किल होता होगा ना, 

औलाद के ताने सहना, फिर भी उनके ही संग रहना। 


बेचारा अपने अंदर की भावनाओं को 

अंदर ही दफन कर देता होगा

वश किसी पर आजकल नहीं चलता उसका 

खुद को बिना वजह ही कोसता होगा। 


कुछ भी हो जाये लेकिन एक बाप 

अपने बच्चों का बुरा नहीं सोच सकता । 

यह सोचते सोचते मेरी आँखों में आँसू आ जाते है ।

पास जाकर उनके पैरो में पड़ गिड़गिड़ाता हूँ। 


मुझे ऐसा लगता है कि एक बाप होना, 

दुनिया की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। 



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