दुख भरी कहानी (एलेजी-कविता)sm#
दुख भरी कहानी (एलेजी-कविता)sm#
जख्म रिस रहा था
लहू का दर्द
जिसमें से
टपक रहा था
चक्षु जिसे उजागर
कर रहे थे
दर्दिल तपिश की
कहानी बूंदों में
बयां कर रहे थे।
वक्त का कटु खंजर, चला था,
जिसको जो मिला, उसने उसको लूटा
मंजर कुछ ऐसा सजा था
बना-बनाया, सजा-सजाया, संसार
पल भर में ही उजड़ चला था,
जो बटोर सके, बटोर कर,
राहों पर निकल पड़े थे,
बहन- बेटियों- बहुओं की आबरु
बचाने तक के लाले पड़े थे
कभी राजसी ठाठ-बाठ वाले भी
आज राहों में भिखमंगों, से खड़े थे
दुश्मन के आगे घुटने ना टेकने की
जिद पर वे अडे थे
खुद के सीने पर तलवार- खंजर- गोली,
का वार सहकर भी वो
अपने-अपनों को 'महफूज ठिकानों'
पर पहुंचाने का 'मार्ग प्रस्तर' करने में लगे थे।
जो आता आमने-सामने
दुश्मन उसका ही गला काटने
सर कलम करने में, मस्त-व्यस्त बड़े थे
कभी थे जो अपने-सगे, एक ही
प्रांत में जन्में, पले-बढ़े थे
आज, 'हिंदो-पाक' को जुदा करने
में दिलो-जां से, तल्लीन हुए पड़े थे
एक ओर देश को 'गोरों से' आजादी मिली थी
दूजी ओर स्व: को स्व: से ही विरक्त करने की
कूटनीतिक-सियासी साजिश, टूट-कूद पड़ी थी
ये दर्दिल कहानी हमने अपने
बड़े- बड़ों के मुख से सुनी थी
एक ओर जिंदगी खुद को बचाने में
जुटी पड़ी थी,
एक ओर, अपने-अपनों से बिछड़ने की
अखंड चिता जल रही थी
ये बेदर्दी, दुख भरी, कहानी है, उस जनता की
जो बेचारी, विभाजन के दर्द में, दुख की चिता
पर आहुत हुई पड़ी थी।।