मेरा हम
मेरा हम
कोई बहुत अजीज था,
दिल के बहुत करीब था...
एक दिन हवा चली,
ग़म ए बरसात हुई...
मौसम बदला था,
बादलों का पहरा था...
बिजली गिरती रही,
अंधेरा कौँधता रहा,
एक बेदर्द दिल,
मोहब्बत को लूटता रहा...
दिल में बेपनाह प्यार था,
बहुत अजीज कोई साथ था...
मगर अफ़सोस धोखा हुआ,
दिल के साथ खेला हुआ...
मालूम नहीं था,
माकूल नहीं था...
उजालों का साथी था,
अंधेरों में दग़ा करता था,
वो सच्चा प्यार नहीं था,
बेहतर तलाश करता था...
यह उसी अजीज का अहसास है,
मेरे दिल का टूटा एक विश्वास है..
जो अजीज ए दिल होता था,
वो बहुत बेदर्द दिल निकला था,
जिसे दिल ए अजीज समझा था,
वो इश्क़ जहर देकर निकला था...
कातिल बन गया पल में,
जो बाहों में इश्क़ सोया था,
इश्क़ में जहर इतना मीठा था,
कातिल मोहब्बत को जीना था..
अजीज ने सोचा कि ज़िंदा न रहूं मैं,
मगर भाग्य से इस दुनिया में ज़िंदा हूँ मैं...
दिल ने जिसे बहुत चाहा था,
वो इश्क़ कातिल निकला था...
बस इतना ही समझ लो,
ज़िन्दा हूँ मैं सब देख लो,
कागज़ पर शब्द बनकर,
और क़लम में रक्त बनकर...
गुमनाम जिंदगी का फलसफ़ा,
आज भी याद वो इश्क़ बेवफ़ा..