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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

मेरा ग़म

मेरा ग़म

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दफ़न होती मेरी सांसे हिसाब मांगती हैं,

और बेवफ़ा ज़िन्दगी लिहाज़ चाहती है...


इस भरे जमाने में एक तुम ही अच्छे न थे,

बुरा जमाना भी अच्छा लगा लोग अच्छे मिले...


मेरा दर्द ही कुछ बयां ऐसा है,

जमाने में हाल ए दिल जैसा है,


ज़िन्दा हूँ मैं मेरा दिल कहता है,

क्योंकि साँसो का थमने जैसा है।


छोड़ देगी एक दिन जिंदगी लिवास अपना,

लहद ए गम होगा न कोई फिर शख्स अपना...


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