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Anshita Dubey

Tragedy

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Anshita Dubey

Tragedy

सुरक्षा पर सवाल

सुरक्षा पर सवाल

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जलाया जाता है आज भी बेटियों को,

और समाज कहता है वो सुरक्षित हैं,

ये कैसी सुरक्षा है ?

जो पल में सांसों पर विराम लगा देती है,

आग की लपटों में,

उसकी आत्मा कितनी तड़पी होगी,

शरीर कितना झुलसा होगा,

चमड़ी के निशान बस तुम्हें दिखते होंगे,

तभी एक मोमबत्ती जला देते हो कैंडल मार्च में,

कभी जला के देखना ख़ुद के हाथों पर भी,

शायद सिहर उठोगे लौ या चिंगारी से,

या मात्र लाल लपटों की सोच से, 

पर ये हादसा तो

न जाने कितनी सांसों और जिंदगियों को

झकझोर कर चला गया,

और हमारे पास कोई जवाब नहीं,

आज भी बस वही एक सवाल खड़ा है

आत्म सुरक्षा का,

सुरक्षा न भीतर है, न बाहर है ,

बताओ वो दहलीज़ कहां है

जहां उस आत्मा को भय न हो ?

जहां विचारों से ऊपर भी वो जी सके

एक सामान्य सी जिंदगी चुन सके।



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