saru pawar

Tragedy

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saru pawar

Tragedy

सन्नांटे गलियों में..

सन्नांटे गलियों में..

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आज सालों बाद कदम गांव में रख्खा..         

गलियां वहीं थी मगर कुछ ज्यादा ही चुपचाप सी     

घरो में रौनक नहीं थी ना अस्तित्व की निशानियाँ


उजडे थे कई मकान कुछ खंडर थे बने

कुछ आंगन तरसते बच्चों के लिए दिख रहे थे        

बरगद के पेंड की छाँव भी थी अकेली ..


ना खुशबू घरों से आ रही थी बाजरे की रोटी की      

ना चुल्हे से धूँवा उठ रहा था किसी..            

शायद घरों में माँ ही नहीं थी किसी


ना बरामदे में बिछी चारपाई पे दादा /दादी         

सेंकते धूँप बैठे दिखे ना ..

झुला झूलते पालनों में नन्हें दिखे


रौंनक नहीं बस सन्नाटें ...                   

सन्नाटे मेरे गांव की गलियों में ..


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