आईना झूठा है
आईना झूठा है
निज अक्स संवारता है
जख्म कुरेदना जानता है
आइना का फसाना ऐसा
सच्चा किरदार दिखाता है
सब को बेमौत मारता है
जरा नहीं कतराता है
आइना कभी घबराता नहीं
बिनमतलब हक जताता है
बेईमानी हमसे करता है
अश्कों को छुपाता है
आइना साफ होकर भी
धुंधली तस्वीर दिखाता है
आखिर टूट जाता है
टुकड़ों में बिखरता है
गुंजाइश नहीं जुड़ने की
आइना झूठा जो है।
