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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

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यह सच आज मुझको मालूम हो पाया

यह सच आज मुझको मालूम हो पाया

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यह सच आज मुझको, मालूम हो पाया।

मेरे दुःख में किसने, मेरा साथ निभाया।।

वैसे तो हमेशा मुझसे, करते थे बातें सब।

आज मेरी मुसीबत में , किसने वादा निभाया।।

यह सच आज मुझको----------------।।


रिश्तें मुझसे जोड़े सबने, पैसा मेरा देखकर।

तोड़ दिये सभी ने रिश्तें, संकट मेरा देखकर।।

छोड़ा पूछना हाल सभी ने,दर्द मेरा देखकर।

दौलत से भी बनते हैं रिश्तें, आज देख पाया।।

यह सच आज मुझको----------------।।


मेरे परिवार वाले तो, कभी अपने नहीं बन सकें।

प्यार- सम्मान अपने मुझको,, कभी नहीं दे सकें।।

देते हैं वो तो तानें , मुझको मेरे दुःख- दर्द में।

क्यों रिश्तेदार मेरा आज, काम नहीं आ पाया।।

यह सच आज मुझको-------------------।।


आज मेरे दर्द पर , हमदर्दी किसी ने नहीं दिखाई।

समझकर शरीफ मुझको, दौलत मुझसे कमाई।।

खबर मेरी छुपाकर इन्होंने, पीठ मुझको दिखाई।

ऐसे भी हैं दुनिया में लोग, समझ आज यह पाया।।

यह सच आज मुझको--------------------।।


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