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Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

4.5  

Yogesh Kanava

Abstract Inspirational

तुम ही तो हो

तुम ही तो हो

1 min
410


अंधकार जब 

घेर लेता है मुझको 

अपनी ही समस्याओं के 

बादल उमड़ कर 

छा जाते हैं मुझ पर 

कोई भी राह नहीं सूझती 

और ना ही दिखती है कोई मंज़िल 

तब मैं 

निःसहाय सा 

किसी सहारे की उम्मीद में 

भटकता हूँ 

और यही भटकाव 

मुझे ले आता है 

तुम्हारे पास। 

ग़मों से बोझिल 

आँखों से यदि 

छलक पड़े कोई आंसू 

तो 

बनकर नारी का परम रूप

अपने आँचल से 

आंसू मेरे पोंछ देना 

दे देना अपना ममत्व 

और स्नेहिल थपकी से 

दुलार देना। 

जाग पड़े जब कभी 

भीतर का पुरुष मेरा 

भर लेना अंक में अपने 

प्रेम सागर में मुझको समा लेना। 

हो जाये 

जब काया बूढ़ी और जर्जर 

तब भी तुम मुझको 

छोड़ ना जाना 

हे संध्या सुंदरी 

तुम मेरा साथ निभाना 

क्योंकि तुम ही हो 

जिसे 

मैं अपना हर दुःख 

कह देता हूँ 

और 

पा जाता हूँ अपनी मंज़िल। 



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