तुम ही तो हो
तुम ही तो हो
अंधकार जब
घेर लेता है मुझको
अपनी ही समस्याओं के
बादल उमड़ कर
छा जाते हैं मुझ पर
कोई भी राह नहीं सूझती
और ना ही दिखती है कोई मंज़िल
तब मैं
निःसहाय सा
किसी सहारे की उम्मीद में
भटकता हूँ
और यही भटकाव
मुझे ले आता है
तुम्हारे पास।
ग़मों से बोझिल
आँखों से यदि
छलक पड़े कोई आंसू
तो
बनकर नारी का परम रूप
अपने आँचल से
आंसू मेरे पोंछ देना
दे देना अपना ममत्व
और स्नेहिल थपकी से
दुलार देना।
जाग पड़े जब कभी
भीतर का पुरुष मेरा
भर लेना अंक में अपने
प्रेम सागर में मुझको समा लेना।
हो जाये
जब काया बूढ़ी और जर्जर
तब भी तुम मुझको
छोड़ ना जाना
हे संध्या सुंदरी
तुम मेरा साथ निभाना
क्योंकि तुम ही हो
जिसे
मैं अपना हर दुःख
कह देता हूँ
और
पा जाता हूँ अपनी मंज़िल।