बेजुबान ए दिल
बेजुबान ए दिल
अब अकेलापन सताता नहीं हमें, बेदर्द जालिम इश्क ने हमें खुद से प्यार करवाना सीखा दी है।
मालूम न था हमें मोहब्बत आखिर होता क्या है, बेवफाई की परछाई परतें ही मन में
बस एक ही खयाल आया, बस खुद से भी कुछ राज छुपाना चाहिए।
उन होंठों को छूने की औकात नहीं हे हम में,
उन हाथों में हाथ रखकर वादा करने की सोच भी नहीं आता,
बिखरे हुए शब्द को क्या परिभाषा दूँ, आखिर जीवन में बांचा ही क्या है।
आदत सी बन गई है अब अकेले रहने की, अब किसी को खोने का खौफ सताता भी नहीं।
चिड़िया का घोंसला बन चुका है जहां पर अनगिनत चिट्ठी ने मातम मचाकर रखे हैं,
खुद के पास ही कोई जवाब नहीं तो उन्हें क्या कहूं भला?
आखिर ए जिंदगी तो मैंने ही चुनी थी।
आगे क्या होगा पता नहीं, कल का सवेरा शायद ही कोई रंग लेकर आए उसका कोई उम्मीद भी नहीं।
भटकती हुई फिजा में बस बहता जा रहा हूँ कागज की पन्ने की तरह
जो उड़ना तो चाहते मगर उनका कोई पंख नहीं।
दिल के जनाजे पर हाजिर जरूर होना,
क्यों की आखिर तक साथ देने वाला सिर्फ तुम हो कोई और नहीं।