बात कितनी गहरी है
बात कितनी गहरी है
सुना है महकती है तन्हाई भी वहॉं
जब सीने पे उसके तुम सर रखे सोती हो
और यहाँ एक मैं हूँ
मेरी तनहाई है
ये क़लम है, काग़ज़ है
उस पे कुछ आधे अधुरे-से नग़में हैं
और लिखावट को धुँधली बनाती कुछ बूँदें
कुछ काग़ज़ पे बिखरी हैं
कुछ पलकों पे ठहरी हैं
अब क्या बतायें तुम्हें के बात कितनी गहरी है!
कुछ तुम याद करते हो हमें
कुछ हम भूल ना पाये हैं
दिल के ऑंगन में धूप बेशक सुनहरी है..
पर क्या बताये तुम्हें के बात कितनी गहरी है!