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परेश पवार 'शिव'

Others

5.0  

परेश पवार 'शिव'

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बारिश के रंग

बारिश के रंग

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दोपहर से हो रही तूफ़ानी बारिश

रात होते होते थक-सी जाती है

फिर बड़ी देर तक गप्पे हाँकते मेहमान को,

हमारे ऊबने का अहसास हो और वो आप

ही उठकर जाने लगे,

ठीक उसी तरह बारिश अपना रास्ता नापने लगती है

और लुका छुपी के खिलाड़ी की तरह मैं,

चुपके से खिड़की खोले, बारिश के चले जाने की

तसल्ली कर लेता हूँ


उसकी रों रों करती आवाज़ अब भी कानों में

गूँज रही होती है

पर बाहर का माहौल मानो चरम को लाँघे

नींद की आगोश में गुम,

किन्ही बेफ़िक्र आशिकों की तरह ख़ामोश-सा

सुस्ता रहा होता है

घर की आस में रास्ते की परवाह न किये चलते

किसी मुसाफ़िर के पैरों की आहट

हलकी धुन-सी बहती हवा की लहरें

पत्तों की सरसराहट, उनपर से सरकते हुये रास्ते को

भीगाती बारिश की बूँदें

और इन सबको, खिड़की में से निहारता मैं


बस्स..

यही कुछ चीज़ें उस बेजान-सी ख़ामोशी में

ज़िंदगी का अहसास दिलाती हैं

हौले हौले बहती कानों में बतियाती हवा,

चुपके-से कान में घुसकर बदन में सरसरी पैदा

करती है

रास्ते पर अब भी पानी है पर अब वो ठहर चुका है

ऐसे में छत से फिसलती,

नीचे जमा पानी में गोता लगाती बूँदों को देखकर,

ज़हन के तालाब में मानो ख़यालों की लहरें-सी

उठने लगती है

दोपहर में गिरती वो फुहारों-सी बारिश

मानो बचपन का कोई साथी खेलने के लिये

आवाज़ लगा रहा हो

पर फिर वो रों रों करती डरावनी बारिश

जैसे आपे से बाहर होकर झगड़ता कोई दोस्त


और अब??

पीछे बची ये ख़ामोशी.

दिल के आर पार जाती

रूह को टटोलती

सारे घावों पर मरहम लगानेवाली

महबूबा-सी ख़ामोशी

आराम से तुम्हारे सीने पे अपना सर रखे हुई

तुम्हें नींद की आगोश में जाते हुये देख,

उसकी हिरनी जैसी आँखों में भी उस वक़्त

यही बारिश होती है


न जाने इस बारिश के रंग कितने हैं..?



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