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Uddipta Chaudhury

Tragedy

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Uddipta Chaudhury

Tragedy

एक गुजारिश

एक गुजारिश

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गुजारिश था जिंदगी से जुड़ी हर जस्बात से,

गुजारिश था खुद से भी शो दफा,

भटकती हुई अरमानों से पूछो जरा,

आखिर हमारी गुनाह ही था क्या?


कठगेरे में खड़ा होकर भी दिए न जाने कितने ही सवालों का

सही जवाब फिर भी खुद ही क्यों रहती हूं खफा।


जले से न जले ए दिल,

इश्क की गहराई से देखो तो जरा,

हमे डूबने का सोख था,

उसकी अंदरूनी चहातो को हम ने कभी देखी ही नही,


जिस्म की हरताल ने हमे जीतेजी मार डाला,

अब तो कोई प्यासी नजरे हमे सताता ही नहीं।

हमे खेद है खुद पर के हमे कभी प्यार मिली ही नहीं,

पर साथ ही साथ नाज भी है के बेवफाई की

जहर पीकर भी हम जिंदा है।


इंतकाम लेने की फुरसत आखिर हमें कहां,

जन्म से एक बेनाम खत हमारी इंतजार में हैं

जिसमे लिखा है कुछ किस्से अधूरी सी,


संगदिल सनम ने क्या आशिकी की गुल खिलाई थी के उनके और

खींचते चले गए और हमे पता भी न चला।

चिरचिरा पन बरता ही गया, हम डूबते गए,

फिर मेरे हाथ ने कलम उठाई और हम लिखते चले गए।


एक आखरी ख्वाहिश हमें भी है

के मेरे अल्फाज़ में थोड़ी से जान आ जाए,

कोई ए पारकर रो दे ओर किसी की जिंदगी सुधर जाए।


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