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Uddipta Chaudhury

Tragedy

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Uddipta Chaudhury

Tragedy

बेदर्दी इश्क

बेदर्दी इश्क

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तेरी कद्र था हमें इस कदर के वक्त के नाकाबंदी में भी

बेवफाई की संगत हमे मंजूर था।

इजहारे इश्क में ए काफिले खुदा, बक्स दे हमे

बक्स दे उन तमाम लंबे की खातिर जिनके लिए

मजनू ने भी अपने सीने पर पत्थर खाया था।


हालात मौत से भी बत्तर होता गया,

जिस्मानी ताल्लुकात रखने वाले नकली वफा के

सजावट लिए हमें न जाने कब अपना बना लिया।

खुदसुरत बला थी वो, झूमती आंखे,चंचल निगाहें,

बारिश के बूंद से भी सव्छ रौनक और उनकी अधूरी यादें,


बिकते रहे भरे बाजार में गम की कलस में बंध एक मूर्च्छाई सी गुलाप की तरह,

रोते रहे हर पल वोही खामोशी के साथ बस उसे कोई देख न पाया,

ऊंची उड़ान भरने वाले आज रहे गया है बस उन चंद लम्हे की गुलाम,

जिसे वो बोहोत पहले छोड़कर आया था

अब तो रहे गए सीने पर उनकी बेवफाई की खंजर का निशान।


शानो शौकत से भरी पड़ी है आज की महफिलें जबान,

हम ठहरे गुजरते दिनों की निशानी,किसी को मेरा क्या फिक्र भला।

इजहारे इश्क की हर धड़कन तेज होते गए,हर एक पन्ने को

भरते हुए कहानी के हर किरदार को निभाते गए।


गैर गुजरे थे हम भी कभी,किसी की परवाह न किया,

सोचते हुए भी शर्म आती है खुदपर की खुद को भी बक्स न दिया।

चार कंधे पर सवार होकर आज में चल रही हूं रख बनने,

आज सभी अपने मेरे साथ ही है, बस वोही नहीं

जिनसे हमें कभी बेपन्हा मोहब्बत हुआ करती था।


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