तन्हाई
तन्हाई
तन्हाई में डूबा हर शाम, रात रंगीन यादों के संग,
महफिलें जबां, लंबा भी कंपकंपाती हाथों से पी रही थी नमकीन जाम।
सरफिरे अतरंगी आदत अपनी, अदाएं तो देखो जैसे नई नवेली दुल्हन,
प्यार के बगीचे में वो डूबता हुआ सूरज कैसे मुस्कुराकर
स्वागत कर रहा है चांद को, वो ही खूबसूरत नजारे फिर से एक बार।
दिल के बागबान में खिलखिलाती दिल से पूछो जरा,
तुमने फिर से प्यार करने की गुस्ताखी आखिर कैसे की?
बेवफा शायरी लिख लिख कर थक चुका था मैं भी कभी,
कलम ने फिर से अल्फाज़ सजाए वैसे ही जैसे हम ने कहा।
वो ही रेन शेन, वो ही मधुर धुन, वो ही जीती जगती नजरें,
वो ही खूबसूरत खयालों में मसरूफ,
हां पता है के किसी से बेवजह वफा की उम्मीद करना बेवकूफी कहलाती है, फिर भी मैंने की,
वो भी उनसे जो कभी अपना हुआ करता था।
अब तो बस सोचता हूं के चढ़ा दूँ अपनी बलि उन खूबसूरत आंखों के पर्दे पर
जहां मेरे लिए कभी आशिकी झलकता था।