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उनका क्या करूँ

उनका क्या करूँ

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मेरी टेबल पर रखा गुलदान 

काफ़ी पुराना हो चला है 

थोड़ा क्रेक भी हो चुका है 

उसमें सजे फूल भी

अपना रंग खो चुके हैं। 


कई बार सोचा 

निकाल दूँ बाहर 

दूसरा नया 

सुंदर सा ले आऊँ 

लेकिन यादें जो 

जुड़ी हैं उससे 

उनका क्या करूँ।


अब भी उन 

बनावटी फूलों से 

महकता है मेरा कमरा 

सांसों में भर लेती हूँ 

जी भर के वो महक

और महकती रहती हूँ 

मैं भी तेरी यादों में।


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