फ़र्ज
फ़र्ज


जिस बाप ने उंगली पकड़ कर
बचपन में तुम्हें चलना सिखाया
घोड़ा बन अपनी पीठ तो कभी
कन्धों पे बैठा कर घुमाया।
तुम्हारी एक फरमाइश पर
खिलौनों का भंडार लगाया
तुम्हे पढ़ाने की खातिर
कितना उन्होंने क़र्ज़ उठाया।
उसूलों और आदर्शों का
कितना सुन्दर पाठ पढ़ाया
जीवन में हरदम सच्चाई और
सही गलत का मार्ग दिखाया।
तुम भी अपना फ़र्ज़ निभाओ
अब वक़्त है तुम्हारा आया
याद रखना बुढ़ापे में कभी
हो ना जाए वो तन्हा और उदास।
तुम्हीं तो हो उनकी उम्मीद का साया
तुम्हें इस काबिल बनाने में ही
उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया !