लिखा करता
लिखा करता
चिट्ठी में कोई अपने एहसास लिखा करता
मुझ को धरती और खुद को आकाश लिखा करता
झांझर नदियों की बजती हर प्यास बहक जाती
सागर की हर लहरों का निःश्वास लिखा करता।
हर शब्द प्रेम में रंगा हुआ हर पंक्ति गीत होती
हर रात पूर्णिमा होती फिर मधुमास लिखा होता।
मौसम का बेदर्द डाकिया मेरे घर फिर आता
उसके ख़त में फिर मुझको विश्वास लिखा होता।
डगमग कदम संभाले "आकिब" रहता आगे को
मंज़िल की सीढ़ी पर जो शाबास लिखा होता।