सावन
सावन


तुम स्याह बादल बन आये थे
आज मेरे देस
और छा गए थे घटा बन घनघोर
आकाश पर....मुझ पर....
बरसे थे बूँद बूँद...मुझ पर
मैंने थाम लिया था तुम्हें अपनी
खुली हथेलितों पर...
तुम झरे थे बूँद बूँद मेरी खुली जुल्फों से
और सरक आये थे मेरी ग्रीवा से नीचे
तुम्हारे स्पर्श से दहक उठी थी मैं लाल
गुलमोहर सी... भिगो दिया था तुमने
मेरा तन ...मन
मेरे पैरों से फिर नीचे तुम बह चले थे....
कर मुझे सिक्त लिए अपने आगोश में....
सराबोर कर मेरी रूह को अपने प्यार में
और फिर दांतों तले मुस्कान दबाये
देखा था मुझे एक भर निगाह तुमने
और रोम रोम सिहर उठा था मेरा...!!
हाँ, आज बरसे थे तुम जी भर कर मुझ पर
आज सावन मुझपर गुजरा था...