जीवन चक
जीवन चक
अपनी ही परिधि में
यूँ घूम रहे हैं
खो आए क्षणों को
फिर से खोज रहे हैं
बिछड़ गए थे
जिन राहों पर कुछ साथी
बीते पलों से उन्हें
फिर पूछ रहे हैं
चले थे जिस जगह से
गर वहीं था पहुँचना
इतना सफर फिर
क्यों तय किए हैं
ईश्वर का था बस
मनोरंजन ये नाटक
जिस जिन्दगी को हो
संजीदा हम जिए हैं
खोना ये पाना
मिलना औ बिछड़ना
सफलता विफलता
मंजिलों तक पहुँचना
था बस खिलौना
ख्वाबों का फसाना
आँखें खुली तब ही
जाना है सब ये
कारगुज़ारी सब उसकी
माना तब मन ये
है जबतक ये नाटक
है तब तक बसेरा
देखें फिर कहाँ डलता है डेरा,
डलता है डेरा....!!!
