parag mehta

Romance

5.0  

parag mehta

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किताब का वो पन्ना

किताब का वो पन्ना

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किताब के उसी पन्ने पर आ ठहरा हूं मैं,

जिस पन्ने में खुशबू है उस एक गुलाब की।


वो गुलाब जो गवाह बना उस एक लम्हे का

जिस लम्हे ने इश्क़ का वो इजहार देखा था।


इज़हार जो कि खूबसूरत था उतना ही

जितनी खूबसूरत उस गुलाब की हर कली थी।


हर वो कली जिसमें खुशबू थी सिमटे हुए

और वो ख़ुशबू की महक उस रिश्ते सी थी।


जिसका गवाह फिर वही गुलाब बना था

किताब का वो पन्ना आखिर जिसका ठिकाना था !


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