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parag mehta

Abstract

5.0  

parag mehta

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अरमान!

अरमान!

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कुछ मीठे से,

कुछ लतीफे से!

आज कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


जो किया था वादा खुद से,

उसे तोड़ कर अब से!

आज कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


कहते हैं शरीफ इन दिनों,

बर्दाश्त उसे करते करते!

आज कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


सच जो कह देते तो,

दिल की चाहत बता पाते!

और उस बंधन को तोड़ आते!!


पर वक़्त की नज़ाकत ने रोक लिया,

उसी नज़ाकत की खातिर!

आज कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


छोड़ जिन गलियों को निकले थे,

मुड़ते हुए वहीं करीब से!

आज कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


पर नहीं! अगर बंधना ही था उस राह में!!

तो वो राह ही आखिर गलत होगी!!

और हम उस राह को गलत साबित करते,

फिर कुछ अरमान जागे जागे से रह गए!!


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