हवा का ज़ोर !!
हवा का ज़ोर !!


जी , हवा का ज़ोर तो अब बदला है ,
ये किस्सा अब किसी और करवट हो चला है।
मोहब्बत भी अधूरी सी थी तब तक
शिद्दत भी पूरी न थी जब तक।
एकतरफा इश्क़ की ख़ुशी में कहीं
उड़ चला वो पंछी दूर कहीं।
बस हार मान कर लौटा ही था,
अपने नसीब को कुछ कोसा ही था।
फ़ना हुआ जिस गुरूर की खातिर,
नया मोड़ भी दिया उसी ने आखिर।
बारी अब आने वाली किसी और की थी,
किरदार अलग , कहानी पर वही थी।
एहसास इश्क़ का हुआ दूसरी ओर भी,
आखिर हुआ , थोड़ी देर से ही सही।
किसी दुआ में माँगा था शायद,
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किसी ने दिल से पढ़ी थी आयत।
पर खेल फिर ये नसीब का है,
जो माँगा वो मिलता कहाँ है।
अब वहीँ पहुँच गयी ये कहानी,
हाथों से जैसे फिसले रेत रवानी।
फर्क सिर्फ इतना है इस बारी ये,
कि इश्क़ इकतरफा नहीं कहीं से।
वो पहले भी हारा तो था ज़रूर,
पर तब नहीं था उसका ये फितूर।
अब तो जीतने की बारी है उसकी,
आखिर इतनी धुल ऐसे ही नहीं उड़ती।
किस्से का करवट यूँ ही नहीं बदला,
ताकत लगी , बहुत हुआ था हल्ला।
बात इश्क़ की थी, खिलाड़ी खेल गया,
हवा का ज़ोर ही तो था, बदल गया ।