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parag mehta

Tragedy

5.0  

parag mehta

Tragedy

कभी कुछ !

कभी कुछ !

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मिल कर भी ना मिलता कभी कुछ!

भूले से ही पर मेरा हाल तो पूछ!!


ये भी खूबसूरत है तरीका!

तुमसे ही सीखा ये सलीका!!


रह गया जो कुछ दरमियान!

बीतने की बाद कई सदियाँ!!


फिर कभी जो मेरा ख्याल आ जाये!

तो भी एहतिराम रखना तुम मेरा!!


क्यूंकि ज़िक्र जब भी आता तुम्हारा!

ख़ामोशी का ही लेता मैं सहारा!!


किसी रोज़ सोच रहा हूँ मैं भेजूं एक खत!

बस तब तक तू ये नाम भूलना मत!!


और वजह खत की मत लेना तू पूछ!

मिल कर भी कहाँ मिलता कभी कुछ!!


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