मैं
मैं


ये बात है एक द्वंद्व की !
उसके साथ जुड़े विध्वंस की !
सवाल तो वो एक ही है !
जवाब जिसका "मैं" ही है !
आखिर श्रेष्ठ है कौन ?
इसके उत्तर में कोई ना मौन !
सब कहते खुद ही को श्रेष्ठ !
कोई ना लगता खुद से ज्येष्ठ !
ये तो है एक ऐसी जंग !
फीके से लगते जिसके आगे सब रंग !
पर बात करता हूँ एक पते की !
यह तो असल में है एक फिरकी !
जब मान ले हर इंसान !
कि "मैं" तो नहीं महान !
ना मैं श्रेष्ठ , ना तू श्रेष्ठ !
सिर्फ एक है जो सर्वश्रेष्ठ !!
ज़ोर तो बस उसक
ा ही चलेगा !
ना उससे कोई जीता , ना ही जीतेगा !
कोई भी नीचा ना है मुझसे !
जाना जिसने ये , वो खुश सबसे !
गवाही देता है यह इतिहास भी !
जंग जब भी हुई है श्रेष्ठता की !
किसी को भी ना मिल सकी विजय !
सभी के हाथ आई सिर्फ पराजय !
तो दायित्व है यह सबका !
नाम ना आने पाए अब जंग का !
और उसे साधना है अगर !
बिना किसी डर और कोई फिक्र !
तो फिर उठे जब भी ये द्वंद्व !
कि आखिर कौन है सबसे श्रेष्ठ !
सदा लबों पे आये एक ही जवाब !
"मैं" तो श्रेष्ठ नहीं हूँ जनाब !